लुप्त होते गाँधी जी

वर्धा के सेवाग्राम में रखा गाँधी जी का चश्मा चोरी हो गया. यह खबर जब मुझे पता चली तो मैंने झट रिमोट से टीवी ऑन किया. सारे न्यूज़ चैनल खंगाल डाले. लेकिन इस तुच्छ खबर का उल्लेख किसी भी चैनल पर नहीं था.
मैंने अपने खबरिया चैनल के पत्रकार मित्र प्यारेलाल के पास फ़ोन लगाया-”अरे तुम्हे पता है…गाँधी जी का चश्मा चोरी हो गया.
“हाँ पता है…”उसने कहा.
“फिर….किसी भी चैनल पर कोई खबर नहीं…इससे सम्बन्धित …” मैंने कहा.
“ओहो…शर्मा जी… यह कोई इतनी बड़ी खबर नहीं कि प्राइम टाइम पर दिखाई जाये..” प्यारेलाल बेफिक्री से बोला.
“बड़ी खबर नहीं है….देश के राष्ट्रपिता की अंतिम धरोहर चोरी हो गयी, और तुम कहते हो कि बड़ी खबर नही है….”
“अरे भैय्या…तुम्हारे लिए ये बड़ी खबर होगी…मगर चैनल की नज़र में बड़ी खबर वो होती है,,,जिसे दर्शक ज्यादा मिले….जैसे दिग्विजय सिंह का तूफानी बयान…सलमान खान का अफेयर या फिर ऐश्वर्या राय का गर्भवती होना….ये वो खबरें हैं जिन्हें हिन्दुस्तानी दर्शक चाव से देखता है… गाँधी जी से सम्बन्धित ख़बरों की टीआरपी ही नही बनती…ऐसे में चैनल घाटा थोड़े ही उठाएगा.”प्यारेलाल ने बड़ी सहजता से उत्तर दिया.
मैं हैरान था…गाँधी जी के चश्मे को चैनलों पर जगह ही नहीं मिली…यदि इसकी जगह ओबामा की टाई खो जाती तो…तो पूरा मीडिया एक हफ्ते तक इसी न्यूज़ को ब्रेक करता.
बहरहाल मैं गहरी सोच में हूँ कि बापू का चश्मा कौन ले गया होगा. कौन है वो जिसने बापू के चश्मे को चोरी लायक समझा. मेरे ख्याल से वह कोई सिरफिरा या फिर नया चोर ही होगा. क्योंकि अगर शातिर चोर होता तो कोई हीरों का हार या नेकलेस चुराता और यदि उसे किसी सेलिब्रिटी का ही सामान चुराने का शौक होता तो कपिल सिब्बल या फिर दिग्विजय सिंह का सामान चुराता…जिसका उसे बाज़ार में बढ़िया भाव मिलता. बापू के चश्मे का उसे क्या मिलेगा..यही कोई दो-तीन सौ रुपए…… हो सकता है कि चश्मा चोर शोध का विद्यार्थी हो…और बापू के चश्मे पर शोध कर रहा हो…इसलिए प्रायोगिक परीक्षा के लिए उसे चश्मे की जरूरत पड़ी हो. या हो सकता है कि वो यह देखना चाहता हो कि गाँधी जी के चश्मे से ये दुनिया कैसी दिखती है.
वैसे गाँधी जी अब इस देश में अप्रासंगिक हो गये हैं. कभी हमारे लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले गाँधी जी अब मजबूरी बन चुके हैं. लोग कहते हैं “मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी…” गाँधी जी अब एक महापुरुष नहीं परम्परा बन चुके हैं…ऐसी परम्परा जो 15 अगस्त और 26 जनवरी को ही निभाई जाती है. इस देश से गाँधी से जुडी अधिकांश चीजें खत्म होती जा रही हैं. गांधी टोपी, गाँधी दर्शन, गांधीवाद, गांधी की शिक्षाएं…उनकी सोच तो पहले ही गायब हो चुकी हैं. अब बचा था उनका चश्मा….सो वो भी भला आदमी उठा ले गया. यानी गाँधी के देश में गाँधी जी अब लुप्त हो गये हैं. क्यों साहब ठीक कह रहा हूँ ना मैं.

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