आज के दौर में कोरोना वायरस से समस्त विश्व हलकान है। भारत में भी कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। लाॅकडाउन होने से सब कुछ ठप्प पड़ा है। छोटे व्यापारियों, मजदूरों, कामगारों, कर्मचारियों पर रोजी-रोटी का संकट छा गया है। इस स्थिति से निपटने के लिए प्रधानमंत्री ने ‘पीएमकेयर्स’ के नाम से एक फंड बनाया है, जिसमें भारी संख्या में संपन्न लोग पैसा जमा करवा रहे हैं। देखा जाए तो यह गांधीजी के ट्रस्टीशिप सिद्धांत का आधुनिक रूप है, जिसमें देश का संपन्न तबका, उद्योगपति अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा कमजोर लोगों की भलाई के लिए दे रहे हैं। इस फंड में जमा राशि का वेंटिलेटर खरीदने, मजदूरों के उत्थान में खर्च किया जा रहा है। ट्रस्टीशिप की मूल अवधारणा भी उद्योगपतियों के पैसों को भी उनकी मुट्ठी में न रखकर समाज के कल्याण के लिए खर्च करना है। यदि ट्रस्टीशिप सिद्धांत का सरकार अवलोकन करे और आर्थिक चिंतक, सलाहकार इस पर गंभीरता से मनन करके, इसमें वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार सकारात्मक फेरबदल कर इसे लागू करे तो मुसीबत झेल रही अर्थव्यवस्था को संजीवनी मिल सकती है और देश को खुशहाली के रास्ते पर लाया जा सकता है। स्वयं गांधीजी के शब्दों में,‘‘ मेरा ट्रस्टीशिप का सिद्धांत कोई ऐसी चीज नहीं है, जो काम निकालने के लिए आज गढ़ लिया गया हो। अपनी मंशा छिपाने के लिए खड़ा किया गया आवरण तो यह हरगिज नहीं है। मेरा विश्वास है कि दूसरे सिद्धांत जब नहीं रहेंगे, तब भी वह रहेगा। उसके पीछे तत्वज्ञान व समर्थन का बल है। धन के मालिकों ने इस सिद्धांत के अनुसार आचरण नहीं किया है, इस बात से यह सिद्ध नहीं होता कि वह सिद्धांत झूठा है, इससे धन के मालिकों की कमजोरी मात्र सिद्ध होती है।’’