जब गांधीजी बने महामारी योद्धा

आज संपूर्ण संसार कोविड-19 से ग्रस्त है। लाखों लोग इस भयावह वायरस से मारे जा चुके हैं, भारी संख्या में लोग इस महामारी से जूझ रहे हैं। इतिहास बताता है कि अनेक बार विभिन्न रूपों में महामारी मानवता को अपना निशाना बना चुकी है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के समय में भी दो बार महामारी फैली, लेकिन गांधीजी ने महामारी का मुकाबला किया और लोगों को भी इस बीमारी से उबरने में मदद की।
आज जब पूरा विश्व कोरोना महामारी से ग्रसित है, ऐसे में महामारी से निपटने की गांधीजी की शैली का अनुकरण कर, हम कोरोना का मुकाबला कर सकते हैं। महामारी के समय गांधीजी लोगों की सेवा, जगह की स्वच्छता, पोषक आहार की पूर्ति समेत अनेक कदम उठाकर महामारी योद्धा बनकर उभरे।
महात्मा गांधी जब दक्षिण अफ्रीका में थे, तो उस समय 1904 में जोहान्सबर्ग में प्लेग, महामारी के रूप में फैली। जोहान्सबर्ग में ‘कुली लोकेशन’ में यह बीमारी अनियंत्रित हो गई थी। कुली लोकेशन का अर्थ है-भारतीय मजदूरों की बस्ती। दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मजदूरों को कुली कहा जाता था और उन्हें गंदे, संकरे व अस्वच्छ वातावरण में बसाया गया था, जिसे कुली लोकेशन कहा जाता था। इसी कुली लोकेशन मंे प्लेग भयावह तरीके से फैला। गांधीजी के सहयोगी मदनजीत ने महात्मा को इसकी सूचना दी। गांधीजी तुरंत साइकिल पर सवार होकर मौके पर पहंुचे और उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ बिना सरकारी सुविधाओं या सहायता के मरीजों की देखरेख का काम आरंभ कर दिया। गांधी जी ने जोहान्सबर्ग के अपने परिचित डाॅक्टर विलियम गाॅडफ्रे को भी बुला लिया। इन लोगों ने नजदीक के बंद पड़े एक गोदाम को क्वारंटीन सेंटर बनाकर, रोगियों की सेवा आरंभ कर दी। यहां 23 मरीज थे और उनकी सेवा करने वाले 3 लोग। अपनी आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ में गांधीजी लिखते हैं कि,‘‘ अनुभव के आधार पर मेरा विश्वास बना है कि भावना शुद्ध हो, तो संकट का सामना करने के लिए सेवक और साधन मिल ही जाते हैं। मेरे आॅफिस में कल्याणदास, माणेकलाल और दूसरे दो हिन्दुस्तानी थे। मैंने अपने चार मुहर्रिरों, साथियों अथवा पुत्रों-कुछ भी कह लीजिए को होमने का निश्चय किया।’’
गांधीजी आगे लिखते हैं,‘‘शुषुश्रा की वह रात भयानक थी, मैंने बहुत से बीमारों की सेवा-सुश्रुषा की थी, पर प्लेग के बीमारों की सेवा-सुश्रुषा करने का अवसर मुझे कभी नहीं मिला था। डाॅ. गाॅडफ्रे की हिम्मत ने हमें निडर बना दिया था। बीमारों की विशेष सेवा-चाकरी कर सकने जैसी स्थिति नहीं थी। उन्हें दवा देना, ढाढस बंधाना, पानी पिलाना और उनका मल-मूत्र आदि साफ करना, इसके सिवा विशेष कुछ करने को था ही नहीं।’’ गांधीजी के इन कदमों की सराहना करते हुए वहां की नगर पालिका ने उन्हें वहां एक खाली गोदाम पर कब्जा करने की आज्ञा दी, साथ ही एक नर्स और बीमारों की आवश्यकताओं की कुछ वस्तुएं भी भेज दी। बीमारों को समय≤ पर ब्रांडी दी जाती थी। नर्स की सलाह पर वहां कार्यरत सेवकों को भी ब्रांडी दी जाती थी, ताकि वे संक्रमण से बचे रहे। गांधी जी ने डाॅ. गाॅडफ्रे व नर्स की इजाजत लेकर इन बीमारों की प्राकृतिक चिकित्सा भी आरंभ की। महात्मा गांधी ने संक्रमितों के माथे और छाती पर मिट्टी की पट्टी रखकर उनका प्राकृतिक उपचार आरंभ किया।
गांधीजी जानते थे कि इस महामारी की कोई निश्चित दवा या उपचार नहीं है। इसलिए वह आइसोलेशन में रहते हुए उचित आहार के जरिए इस बीमारी को हराने के पक्ष में थे। गांधीजी के अनुसार,‘‘ मैंने और मेरे साथी सेवकों ने महामारी के दिनों में अपना आहार घटा लिया था। एक लम्बे समय से मेरा अपना यह नियम था कि जब आसपास महामारी की हवा हो, तब पेट जितना हलका रहे, उतना ही अच्छा। इसलिए मैंने शाम का खाना बंद कर दिया था और दोपहर को दूसरे भोजन करने वालों को सब प्रकार के भय से दूर रखने के लिए मैं ऐसे समय पहंुचकर खा आता था, जब दूसरे कोई पहंुचे न होते थे। भोजनालय के मालिक से मेरी गहरी जान-पहचान हो गयी थी। मैंने उससे कह रखा था कि चूंकि मैं महामारी के बीमारों की सेवा में लगा हूं, इसलिए दूसरों के सम्पर्क में कम से कम आना चाहता हूं।’’
इस बीमारी से मुक्ति के बाद भी गांधीजी ने कुली अर्थात मजदूर बस्ती में महामारी से बचने के लिए मर्यादाओं का पालन स्वयं भी किया और अपने मजदूर भाईयों से करवाया। कैश लेन-देन की बजाय बैंकिंग व्यवस्थाओं को अपनाने पर जोर दिया गया। नकदी के लेन-देन में भी सावधानी बरती गई। इस लोकेशन में रहने वालों को एक विशेष ट्रेन में जोहान्सबर्ग के पास फार्म पर ले जाया गया। तीन हफ्ते, उन्हें वहां एक तरह से आइसोलेशन में रखा गया। वे निराश न हो, इसलिए भजन-कीर्तन खेल आदि आरंभ किए गए।
वर्ष 1918 में भी, खेड़ा आन्दोलन के बाद स्पेनिश फ्लू नामक महामारी भारत में फैली। अपने राजनीतिक आंदोलनों की व्यस्तता से समय निकालकर गांधीजी ने लोगों से संयम, आइसोलेशन, और सात्विक आहार का पालन करवाया। दक्षिण अफ्रीका के अपने अनुभवों को उन्होंने भारत में लागू किया। उनकी सलाह पर चलकर इस महामारी के प्रसार को रोकने में सफलता मिली। इस दौरान वह स्वयं भी भयंकर बीमार हो गए। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि लोगों की सेवा करते-करते संभवतः उन्हें भी स्पेनिश फ्लू हो गया हो। लेकिन गांधीजी ने स्वयं इसको कोई जिक्र नहीं किया है।
इस महामारी से निजात पाने में महात्मा गांधी के समाजसेवी नेतृत्व ने अहम भूमिका निभाई। गरीब असहाय मजदूरों की उन्होंने निश्छल भाव से सेवा और मदद की। न कोई मीडिया प्रचार, न कोई कैमरा, सोशल मीडिया तो खैर उस समय थी ही नहीं। हम लोग समाज की सेवा करने की उनकी इस शैली से प्रेरणा ले सकते हैं कि अच्छे काम को किसी प्रचार की आवश्यकता नहीं होती, अच्छे काम का अच्छा फल ही उसका प्रचार होता है।
इस कोरोना काल में देश के समाजसेवियों, नेताओं व समाज के अन्य लोगों को महात्मा गांधी के महामारी प्रबंधन से प्रेरणा लेनी चाहिए और पीड़ितों की सेवा में जुटना चाहिए, यही गांधीजी को उनकी जयंती पर सच्ची श्रद्धांजली होगी।

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