हमारे महल्ले में रहने वाले शर्मा जी व उनका परिवार आज बहुत दुखी है. इस दुःख का कारण है असमय ही शर्मा जी की नौकरी छिन जाना. अभी मात्र 68 साल की कम उम्र में ही शर्मा जी को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ गया जिसकी वजह से शर्मा जी काफी दुखी हैं. भगवान् उन्हें व उनके परिजनो को संकट की यह घडी सहने की क्षमता प्रदान करे. कहानी आगे बढे उससे पहले हम अपने दोस्तों को शर्मा जी के बारे में कुछ जानकारियां दे दें. तो शर्मा जी का पूरा नाम खिलाडी लाल शर्मा है. यथा नाम तथा गुण के मुताबिक शर्मा जी खेल का भट्ठा माफ़ कीजियेगा खेल को बढ़ावा देने के लिए पूरे शहर में मशहूर हैं. हमने जबसे होश संभाला है तब से उन्हें शहर की क्रिकेट एसोसिएशन के चिरंजीवी प्रधान के रूप में देखा है. कहा जाता है की खिलाडी लाल पहले खेल का सामान सप्लाई करके अपना गुजारा किया करते थे. उनकी जिन्दगी का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट उनका ब्याह रहा. बताते हैं की उनके साले के साले खेल विभाग में पवारफुल…सॉरी पावरफुल क्लर्क थे. उन्ही की सिफारिश पर शर्मा जी को पहले मोहल्ले की क्रिकेट टीम का मेनेजर बनाया गया था. लेकिन अपनी चतुर चालों और कटीले भालों के चलते शर्मा जी कुछ ही दिनों में शहर की क्रिकेट के सिरमोर बन गए थे. खेल का सामान बेचने वाले खिलाड़ीलाल अब खेल को ही बेचने लगे थे. चूंकि शर्मा जी मेरे मोहल्ले में मेरे घर के पास ही रहते थे, इसलिए मैंने उनकी विकास यात्रा को बारीकी से देखा था. शर्मा जी ने अपने लम्बे कार्यकाल में शहर की क्रिकेट का कितना भला किया, ये विवाद का विषय हो सकता है. लेकिन उन्होंने अपना व अपने कुनबे का भला बखूबी कर लिया था. उनके तीन निखट्टू बेटों में से दो को तो उन्होंने शहरी क्रिकेट लीग की फ्रेंचाईजी दिलवा दी थी, जबकि एक आज क्रिकेट मैचों का नामी ”बुकी” बना हुआ है. इतना ही नहीं उन्होंने एक पोते को भी मोहल्ले की अंडर उन्नीस क्रिकेट टीम का सदस्य बना दिया था. पिछले कुछ सालों में शर्मा परिवार के विकास की दर जितनी तेजी से बढ़ी, उतनी तेजी से तो देश में महंगाई की दर भी नहीं बढ़ी. शर्मा जी की किस्मत और उनके हुनर पर पूरा मोहल्ला ईर्ष्या भाव रखता था. कई बार तो शर्मा जी को लेकर हमारे घर में भी बवाल हो जाता. गुस्से में पत्नी कहती-”सीखो शर्मा जी से कुछ, अपनी पत्नी और बच्चों को ऐसे रखते हैं जैसे कोई राजा-महाराजा का खानदान हो. एक तुम हो जो मेरे लिए उस ज़माने में भी सोना नहीं खरीद सके, जब सोना बेकाबू नहीं हुआ था.” बहरहाल सभी के ईर्ष्या का केंद्र रहे शर्मा जी आज परेशान थे तो इसलिए की आज अचानक शहर क्रिकेट एसोसिएशन को भंग करने और उन्हें प्रधान पद से हटाने का पत्र खेल मंत्रालय ने उनके हाथ में थमा दिया था. इसलिए हमेशा आबाद रहने वाले उनके घर में आज मातम छाया था. उन्हें सांत्वना देने वालों का ताँता लगा हुआ था. शर्मा जी की पत्नी गुस्से में खेल मंत्री को भला-बुरा कह रही थी-” बिना किसी कारण शर्मा जी को हटा दिया, हम उन्हें कोर्ट में देख लेंगे”. पूरी रात शर्मा जी के घर में गहमा-गहमी बनी रही. हजारों को निमंत्रण देने के बावजूद मेरी बेटी की शादी में इतने लोग नहीं आये, जितने शर्मा जी के घर मातमपुर्सी में आये थे. हम भी उन्हें सांत्वना के दो शब्द कहकर घर आकर सो गए थे. सन्डे होने के कारण सुबह देर से सोकर उठा. आँखें खुली तो देखा, सामने शर्मा जी की पत्नी बैठी थी. “बधाई हो भाई साहब, शर्मा जी को प्रधानी से हटाने के आदेश वापस ले लिए गए हैं.” ”हैं, एक ही रात में ये कैसे हुआ ” मैंने आश्चर्य मिश्रित प्रतिक्रिया व्यक्त की. ज्यादा कुरेदने पर पता चला कि शर्मा जी के साले के साले ने एक बार फिर अपना कमाल दिखाया है और रात ही रात में न केवल शर्मा जी को दोबारा प्रधान बनवा दिया, बल्कि खेल मंत्री को इतने ”जानदार” प्रधान को हटाने के लिए कारण बताओ नोटिस भी दिलवा दिया. यह खुशखबरी देकर श्रीमती शर्मा इठलाती हुई वहां से चली गयी. तभी पत्नी जी मेरे पास आकर बोली-”लो जी हॉकी में, कुश्ती में, क्रिकेट में हमारा देश रोज हार रहा है, लेकिन खेल अधिकारीयों को इसकी चिंता ही नहीं। सभी अपने-अपने “खेल” में लगे हुए हैं। मैंने पत्नी जी से कहा- सही कहती हो तुम हमारे खेल अधिकारियों और खेल संघो में पूरा साल ”गेम” होते रहते हैं, जिसके चलते न तो अधिकारियों और न ही खिलाडियों में इतनी एनर्जी रहती है की वे असली खेलों का सामना कर सकें. नतीजा, खेल स्पर्धा तालिकाओं में हमारे देश का नाम लालटेन लेकर देखने से भी नहीं मिलता.