“क्या हुआ मच्छर राज! क्यों इतने व्यथित हैं.” श्री हरी ने आँखें मलते हुए पूछा? “क्या कोई नया असुर मृत्युलोक में आ गया है?
“जी महाराज! बड़ा खतरनाक असुर मार्केट में आया है. जिससे सब हलकान हैं. गरीब अमीर, सरकार और बेकार सभी उसकी जद में हैं. कईयों का वो संहार कर चुका है. बड़े से बड़ा हाकिम उसका इलाज ढून्ढ पाने में अक्षम साबित हो रहा है. कुछ कीजिये प्रभु.”
“कौन है वो असुर”
“उस असुर का नाम कोरोना है महाराज.”
“कोरोना. ये तो पिछले वर्ष आया था.. क्या इस वर्ष भी…?”
“जी महाराज ! इस वर्ष तो और भी भयंकर बनकर आया है. किसी ताड़का, किसी मारीच, किसी पूतना से कहीं ज्यादा ताकतवर. अस्पताल के सारे बेड मरीजों से भर दिए हैं. जो सरकारें मोहल्लों मोहल्लों में क्लिनिक खोलने का दावा करती थी. स्वास्थ्य क्रांति करने का भ्रम पैदा करती थी. वे सब घुटनों पर बैठी हैं. बड़े बड़े डाक्टरों की ऐसी तैसी कर रखी है इसने. जो डाक्टर खुद की स्किल पर और अपनी डिग्रियों पर बड़ा नाज करते थे और आयुर्वेद व घरेलू नुस्खों पर मुंह बिचकाते थे, वे भी अपने मरीजों को काढ़ा पिलाकर और स्वयम भी सौंठ और दालचीनी का घोल पीकर किसी तरह जीवन जी रहे हैं.”
“ इतना ही नहीं महाराज! इस कोरोना ने अच्छे अच्छों की प्रतिष्ठा धूल में मिला दी है. नाईट कर्फ्यू तोड़ने और मास्क ना पहनने पर स्थानीय पुलिस ने बड़े बड़े राजघरानों और महंगी कार के सवारों पर खूब लाठियां भांजी है. लोगों ने खूब अपने पिछवाड़े लाल करवाए हैं.”
मच्छर राज की बातें सुनकर श्री हरी मंद मंद मुस्काए. तब तक उनके हाथ में सुबह की चाय भी आ चुकी थी. चुस्की लेते हुए उन्होंने चुटकी ली,” लेकिन कोरोना तो मनुष्यों के पीछे पड़ा है. आप जीव-जंतुओं को तो वो कुछ नहीं कह रहा. फिर आप लोग शिकायत क्यों कर रहें हैं.”
मच्छरराज ने हाथ जोड़े, बोला,” प्रभो! इस कोरोना ने हमारी मार्केट मिटटी में मिला दी है. पहले हमारी बड़ी धूम थी. मलेरिया, चिकनगुनिया, डेंगू जैसे अनेक मारक दिव्य अस्त्र आपकी कृपा से हमारे तरकश में थे. मनुष्य हमसे डरता था महाराज. एक जमाने में हमने भी मरीजों से अस्पताल भर दिए थे. हमारे नाम से इंजेक्शन बनते थे. आलआउट, ओडोमास, मच्छरदानी… न जाने मार्किट में हमारे डर से क्या क्या बिकता था. मच्छर आता देख लोग वैसे ही श्रद्धारत होकर साइड हो लेते थे, जैसे किसी वीआईपी को देखकर आम लोग हो जाते हैं. लेकिन अब सब खत्म हो गया. हम अब कहीं नहीं हैं. लोग हमें भूल चुकें हैं. हम अपनी खोई प्रतिष्ठा वापस लेने आये हैं हुज़ूर. रोकिये इस आततायी को.”
श्री हरी ने रात को भिगोये बादामों का छिलका उतारते हुए कहा,” यह हमारा नियम है कि जो प्राणीमात्र पर ज्यादा अत्याचार करता है. अपनी औकात से बाहर आकर हमारी सत्ता को चुनौती देता है. अधर्म करता है. उसे समय आने पर हमारा दंड भुगतना पड़ेगा. तुम्हारी बिरादरी के अत्याचारों की जब सीमा पार हो गयी. तब तुम्हें निष्प्रभावी हमने किया. अभी कोरोना के पाप का घड़ा भरा नहीं है. जिस दिन हमारे लेखाकार चित्रगुप्त उसका हिसाब-किताब दे देंगे हम उसका भी भस्मासुर, रावण या कंस की तरह अकाऊंट बंद कर देंगे.”
“ तो तब तक हम और अन्य प्राणी क्या करें महाराज.”
वर्तमान महाराजों की सुनों, उनके दिशा निर्देशों को चुनो और मुंह पर मास्क मत उतरने दो.” कहकर कमल नयन सेनेटाईजर से अपने हाथों को धोने लगे..