कण कण में भ्रष्टाचार

आजकल देश में भ्रष्टाचार को लेकर एक बहस चली हुई है. कोई काला धन लाने के लिए बहस कर रहा है तो कोई सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार पर हाय-तौबा मचा रहा है. वैसे बंदे का ये मानना है कि भ्रष्टाचार पर ये हो-हल्ला फालतू लोगों द्वारा किया जा रहा है. हमारे इतने विशाल लोकतंत्र में जहाँ दिनबदिन महंगाई दर का ग्राफ बढ़ रहा है, लोगों का जीना मुहाल हो रहा है, ऐसे में अगर हमारे मंत्री-संतरी या बाबू लोग अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए 100-200 करोड़ रुपए नम्बर दो का बना लेते हैं, तो क्या बुरा करते हैं. क्यों जी…
वैसे हमारा देश भ्रष्टाचार प्रधान देश है. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक यदि हमारे यहाँ कण-कण में भगवान व्याप्त है….तो जर्रे-जर्रे में भ्रष्टाचार विराजमान है. हो सकता है कि साधन की सीमितता के कारण भगवान फिर भी एकाध कण में घुसने से वंचित रह गये हों लेकिन अत्याधुनिक साधनों से लैस भ्रष्टाचार तो पत्ते-पत्ते, बूते-बूते, फ़्लैट, मॉल्स, गेस एजेंसियों, पेट्रोल पम्पों, खंड-खंडों और भूखंडों में समाया हुआ है, यूँ कहें कि भ्रष्टाचार और हम एक-दुसरे के पूरक हैं. न भ्रष्टाचार जी को हमारे बिना नींद आती है…और न हमें उसके बिना चैन…यानि कुल मिलाकर मामला मेड फॉर इच अदर वाला है. भ्रष्टाचार हमारे देश में इतना पावरफुल है कि पूरा तन्त्र इसके आगे सलाम ठोकता है. अगर कोई भूले से भी इस महाशक्तिशाली से पंगा ले बैठे तो उसका हाल क्या होता है, ये तो आपको पता ही होगा. …
 वैसे आलोचक कुछ भी कहें…भ्रष्टाचार जिन्दगी के लिए बहुत आवश्यक है. आदमी के लिए लाइफ लाइन है यह. मनुष्य को आम से ख़ास और ख़ास को खासमखास बनाता है भ्रष्टाचार. यदि आप किसी सरकारी महकमे के मुलाजिम हैं..तो आपका भ्रष्टाचारी होना बहुत जरूरी है. आप भर पेट खायेंगे..तभी ऊपर बैठे अपने आकाओं को खिला पायेंगे…आकाओं का पेट भरा रहेगा…तभी वे आप पर मेहरबान रहेंगे. आखिर आपकी एसीआर भी तो उन्हें ही लिखनी है. वैसे भी सरकारी कार्यालयों में वे कर्मचारी एकदम निखद कहलाते हैं…जो किसी भी योजना में स्वीकृत धनराशी को ज्यों का त्यों लगा देते हैं….यह उनकी कार्य अक्षमता का परिचायक है. असली कर्मचारी वो है, जो किसी योजना के लिए आयी राशि का पचास परसेंट खुद खा जाये, चालीस परसेंट अपने उच्चाधिकारी कि बीवी को गिफ्ट कर दे और शेष 10 परसेंट योजना पर खर्च कर दे. आप ऐसे कर्मचारी को चाहे कोई संज्ञा दें….पर सरकारी भाषावली में ऐसे कर्मचारी को “मोस्ट एफिसियेंट” कहा जाता है.
वैसे भ्रष्टाचार के केसों की सुनवाई करते-करते सुप्रीम कोर्ट भी परेशान हो गया है. हसन अली के केस से निपटे तो कलमाड़ी केस आ गया…उससे निपटे तो ए राजा…उसकी फाइल खत्म हुई तो कनिमोझी….नीरा राडिया…येदियुरप्पा …नितिन गडकरी यानि सुप्रीम कोर्ट का भी सारा टाइम भ्रष्टाचारियों के केस निपटने में जा रहा है. इससे परेशान  सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों टिप्पणी की थी कि जब देश में भ्रष्टाचार इतने चरम पर है तो क्यों न सरकार इसे वैध घोषित कर दे. हालांकि कोर्ट ने यह टिप्पणी व्यन्ग्यात्म्क लहजे में की थी. लेकिन उसकी टिप्पणी है बड़ी जानदार. इसलिए अब जब सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार को कानूनन वैध बनाने का सुझाव दिया है…तो सरकार को इसका स्वागत करना चाहिए और भ्रष्टाचार को वैधता प्रदान करने की दिशा में कार्य करना चाहिए. मेरा मानना है कि भ्रष्टाचार को कानूनी मान्यता मिलने से देश को कई फायदे होंगे. एक फायदा तो यह कि इसके वैध होने से एंटी करप्शन ब्यूरो जैसे “वाहियात” महकमे स्वत: ही खत्म हो जायेंगे…..जिससे इस महकमे के कर्मचारियों पर होने वाले खर्चे से निजात मिलेगी. दूसरा फायदा यह कि भ्रष्टाचार वैध होने से अधिकारी और कर्मचारी और दोगुने जोश से भ्रष्ट गतिविधियों को अंजाम देंगे…जिससे भ्रष्ट देशों कि सूची (जिसमे अपुन का देश पांचवे या छठे नम्बर पर आता है.) में भी हम अव्वल आ सकेंगे. हमारी प्रति व्यक्ति आय चाहे बढ़े या न बढ़े, कम से कम प्रति अधिकारी आय तो बढ़ेगी. इसलिए सरकार को देश में भ्रष्टाचार की जड़ों को मजबूत करने के लिए युद्ध स्तर पर काम करना चाहिए. साल में दो तीन बार बाकायदा समारोह आयोजित करके भ्रष्ट अधिकारियो को पुरस्कृत करना चाहिए. इन पुरस्कारों का नामकरण भी देश के “महापुरुषों” के नाम पर होना चाहिए. यथा-मधु कोड़ा वार्षिक पुरस्कार या कलमाड़ी अवार्ड फॉर करप्शन आदि. कुल मिलाकर अपुन तो यही कह सकते हैं कि देश में जब भ्रष्टाचार एक अनिवार्य और सर्वमान्य वस्तु हो ही गया है तो क्यों न इसे सविधान में शामिल ही कर लिया जाये. क्यों जनाब आपका क्या कहना है

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