अखंड भारत के जनक: सरदार पटेल

सरदार पटेल….देष के वह महान नेता व स्वतंत्रता सेनानी, जिनके प्रयासों के फलस्वरूप भारत, अखंड राष्ट्र बना। आज कष्मीर से कन्याकुमारी तक भारत का जो वृहद स्वरूप हम देख रहे हैं, वह पटेल जी की ही देन है। पटेल अपने असाधारण कार्यों और राजनीतिक व प्रषासनिक कौषल के कारण भारत ही नहीं अपितु विष्व के राजनीतिक पटल पर एक धु्रवतारे की तरह प्रकाषवान हुए। दिनांक 15 दिसंबर, 1950 को जब उनकी मृत्युु हुई, तब लंदन के प्रसिद्ध समाचार पत्र ‘मानचेस्टर गार्जियन’ ने लिखा था,’’ पटेल के बिना न तो गांधीजी के विचार ही क्रियात्मक रूप से इतना प्रभावशाली प्रमाणित होते और न ही नेहरू के आदर्शवाद को इतना विस्तृत क्षेत्र प्राप्त होता। वे स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में इसका संगठन करते रहे और उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद नवभारत का निर्माण तथा संगठन किया। इतिहास में बहुत थोड़े ऐसे व्यक्ति मिलते हैं, जिनमें पटेल की तरह एक ही साथ एक सफल विद्रोही तथा राजनीतिज्ञ के गुण विद्यमान हो।’’
लौहपुरूष वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के गांव करमसद में एक किसान परिवार में हुआ। बचपन से ही वे कर्मठ, स्वाभिमानी व दृढ़ विचारों वाले थे। यह उनके दृढ़ निष्चय का ही परिणाम था कि एक साधारण घर में जन्म लेने के बावजूद वे वकालत की डिग्री प्राप्त करने विदेष गए और वहां से प्रथम श्रेणी में वकालत पास करके भारत लौटे। धीरे-धीरे अपनी मेहनत और कुषाग्र बुद्धि के चलते उनका नाम गुजरात के प्रसिद्ध वकीलों में षुमार हो गया। कहते हैं कि व्यक्ति के जीवन में एक समय ऐसा भी आता है, जो उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट साबित होता है। जिससे जीवन में बदलाव आता है। जो लोग इस बदलाव को सकारात्मक रूप में लेते हैं, वे इस बदलाव के माध्यम से देष और समाज को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पटेल के जीवन में भी ऐसा समय तब आया, जब वे महात्मा गांधी के सानिध्य मंे आए। महात्मा गांधी से एक मुलाकात ने उनके जीवन और देष के परिदृष्य दोनों को बदल दिया।
यह वर्ष 1918 का समय था, जब भारत में स्वतंत्रता आंदोलन अपने चरम पर था। देष के राजनीतिक पटल पर उन दिनों महात्मा गांधी की आंधी चल रही थी। ऐसे में पटेल गांधीजी के संपर्क में आए। उसके बाद गांधी और पटेल की जोड़ी ने अपने कार्यों के जरिए भारतीय आजादी के आंदोलन की स्वर्णिम गाथा लिखी। गांधीजी पटेल की प्रतिभा से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने अपने हर बड़े कामों मंे पटेल को आगे रखा। चाहे व 1918 का खेड़ा सत्याग्रह हो या 1919 में राॅलेट एक्ट बिल का विरोध या फिर 1928 का बारदोली सत्याग्रह, पटेल ने गांधीजी के सहयोगी के रूप में हर जगह अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
बारदोली के आंदोलन में वल्लभभाई पटेल ने जिस तरह ब्रिटिष सरकार की धज्जियां उड़ाईं, वह कमाल है। तमाम मौसमी आपदाओं के बाद भी ब्रिटिष सरकार ने बारदोली के किसानों पर 30 प्रतिषत लगान बढ़ा दिया। सरकार की नीतियों से लोग तंग आ गए थे, उन्होंने पटेल से सहयोग देने का आग्रह किया। एक किसान परिवार में जन्म लेने के कारण सरदार किसानों की पीड़ा भली भांति समझते थे। इसलिए उन्होंने सन 1828 में बारदोली आंदोलन का नेतृत्व किया। उनके मन में किसानों के लिए कितना प्रेम था, यह उनके इस कथन को देखकर पता चलता है। वे कहते हैं,‘‘ किसान डरकर दुख उठाए और जालिमों की लातें खाए, इससे मुझे शर्म आती है। मेरे जी में आता है कि किसानों को कंगाल न रहने देकर खड़ा कर दूं और स्वाभिमान से सिर ऊंचा करके चलने वाला बना दूं। इतना करके मरूं तो अपना जीवन सफल समझूं।’’ सरदार पटेल ने बारडोली के किसानों की समस्या सुलझाने के लिए जी-तोड़ मेहनत की। ब्रिटिष शासकों से संवाद किया, घर-घर जाकर लोगों को सत्यागह में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। उनकी मुहिम के आगे अंततः सरकार ने घुटने टेके और लगान को माफ करने व सत्याग्रहियों पर दर्ज मुकदमें खत्म करने का आष्वासन दिया। सरकार ने सरदार की सभी मांगे मान ली। इस प्रकार अक्टूबर, 1928 में बारदोली का सत्याग्रह सफलापूर्वक संपन्न हुआ।
बारदोली में उल्लेखनीय कार्य और सुयोग्य नेतृत्व के चलते बम्बई की एक सार्वजनिक सभा में उन्हें प्रथम बार ‘सरदार’ नाम से संबोधित किया गया। इधर भारत की आजादी का संघर्ष अब उफान पर था। गांधीजी और उनके षिष्य सरदार पटेल की जुगलबंदी ने अंग्रेज सरकार को हिलाकर रख दिया था। एक ओर गांधीजी लोगों को अहिंसा व शांतिपूर्ण तरीके से लोगों को आंदोलित कर रहे थे, दूसरी ओर वल्लभ भाई पटेल अपनी ओजपूर्ण वाणी और आक्रामक षैली से लोगों में उत्साह और जोष का संचार कर रहे थे।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बनी पं. नेहरू की सरकार में सरदार पटेल भारत के गृहमंत्री बने। इधर अंग्रेज भारत से चले तो गए, लेकिन जाते-जाते वे देष को बांटने की कुटिल चाल चल गए। मुस्लिम लीग और जिन्ना की महत्वाकांक्षाओं के कारण भारत का बटवारा हो गया और पाकिस्तान बना। देष सांप्रदायिक दंगों और अराजकता का षिकार हो गया। ये पटेल ही थे, जिन्होंने इस असाधारण स्थिति का बड़ी सूझबूझ और बु़िद्धमता से सामना किया। उन्होंने देष में शांति व्यवस्था स्थापित करवाकर ही दम लिया। लेकिन ब्रिटिष सरकार ने एक और चालाकी भरी चाल भारत को क्षत-विक्षत करने के लिए चल दी थी। जाते-जाते वह यहां की देशी रियासतों को सर्वोच्चता का अधिकार सौंप गई। इसके तहत यह रियासतों के शासकों की इच्छा पर निर्भर था कि वे चाहे तो भारत अथवा पाकिस्तान में मिलें या स्वतंत्र रहें। भारत में शामिल होने वाली 562 रियासतें थीं, जिनकी आबादी 8 करोड़, 65 लाख थी, व क्षेत्रफल पांच लाख वर्गमील था, ब्रिटिष सरकार की इस चाल से ये सभी रियासतें भारत से अलग होने का सपना देखने लगी। उस समय भारत की एकता को बड़ा खतरा पैदा हो गया था।
इस खतरे को भांपकर पं. नेहरू की सरकार ने निष्चय किया कि देषी रियासतों से बात करने के लिए एक नए विभाग की स्थापना की जाए। सरदार वल्लभ भाई पटेल की अगुवाई में 5 जुलाई, 1947 को इस विभाग की स्थापना हुई और श्री वी.पी.मेनन को इस विभाग का सचिव बनाया गया। सरदार पटेल ने तुरंत रियासती राजाओं से बात की और उनकी समस्याओं को भी सुना। यह उनका राजनीतिक कौषल ही था कि उन्होंने अधिकांष राजाओं को भारत में शामिल होने के लिए तैयार कर लिया। 1 जनवरी, 1948 को 23 रियासतें उड़ीसा में शामिल हुईं। लेकिन कश्मीर, हैदराबाद और जूनागढ़ की रियासतें भारत में शामिल होने से इंकार करती रहीं। कश्मीर के विलय का मुद्दा पं. नेहरू ने अपने हाथों में लिया हुआ था। सरदार पटेल ने सबसे पहले जूनागढ़ का मुद्दा सुलझाने का काम किया।
इधर हैदराबाद का निजाम भारत में शामिल होने को तैयार नहीं था। पटेल ने बार-बार उनसे आग्रह और तमाम राजनीतिक तरीके अपनाए, लेकिन हैदराबाद का निजाम टस से मस नहीं हुआ। ऐसे में सरदार पटेल ने अपना लौहपुरूषत्व दिखाते हुए हैदराबाद पर सैन्य कार्रवाई आरंभ करवाई। सितंबर, 1948 को भारतीय फौजों ने हैदराबाद पर आक्रमण कर दिया और निजाम को घुटने टिकवा दिए। इस प्रकार करीब 83000 वर्ग मील क्षेत्र वाला हैदराबाद भारत का अंग बना।
पटेल ने हैदराबाद विजय के साथ ही सभी 562 रियासतों का भारत में विलय करवाने में सफलता हासिल की। यह एक ऐसी सफलता थी, जिससे सरदार वल्लभ भाई पटेल की ख्याति देश की सीमाओं से बाहर निकलकर पूरे विश्व में छा गई। उनकी तुलना जर्मनी का एकीकरण करवाने वाले प्रिंस बिस्मार्क से की जाने लगी। पटेल के इस महान कार्य पर कृतज्ञता प्रकट करते हुए पं. नेहरू ने संविधान सभा में कहा था,’’ यह काम सरदार के बूते का ही था, मेरा देशी रियासतों के आंदोलन से सीधा संबंध रहा है। पर 6 महीनें पहले मैं भी यह नहीं कह सकता, जो आज सैंकड़ों साल पुरानी सामंतशाही उखड़ रही है, वह इतनी आसानी से उखड़ जाएगी। मैं समझता हूं कि टेढ़ी और कठिन स्थिति से निबटने के विषय में यह सभा मुझसे सहमत होगी कि हम पर मेरे मित्र तथा सहयोगी उपप्रधानमंत्री सरदार पटेल का आभार है।’’
इस प्रकार सरदार पटेल अपने महान कार्यों के माध्यम से भारत की धरा को आजादी से पहले और आजादी के बाद भी गौरवान्वित करवाते रहे। यांे तो पटेल स्वतंत्रता प्राप्ति के करीब ढ़ाई साल तक ही जीवित रह सके, लेकिन इन ढ़ाई सालों में उन्होंने देश को अखंड व अक्षुण्ण रखने के लिए जो सराहनीय कार्य किया, उसे अब तक याद किया जाता है। वे सच्चे अर्थों में देश की एकता के सूत्रधार थे।

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